हाइलाइट्स
विश्व की एकमात्र मूक रामलीला
सभी पात्र इशारों में करते हैं अभिनय
200 साल पहले झुंझुनू के बिसाऊ में हुई थी शुरुआत
झुंझुनूं . झुंझुनू जिले के बिसाऊ में हर साल आयोजित होने वाली मूक रामलीला विश्व की एकमात्र ऐसी रामलीला है जिसमें सभी पात्र बोलकर नहीं बल्कि इशारों में अभिनय करते हैं. यहां पर रामलीला का मंचन स्टेज की जगह खुले मैदान में बीच सड़क पर रेत बिछाकर लीला का दंगल तैयार किया जाता है. इसी दंगल पर सभी पात्र मूक रहकर अभिनय करते हैं. साथ ही राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न एवं सीता के पात्र को छोड़कर सभी पात्र चेहरे पर मुखौटा लगाकर अभिनय करते हैं. यह रामलीला लगभग 15 दिनों तक चलती है. वहीं रामलीला के दौरान दंगल में ढोल – नगाड़े बजाए जाते हैं जिनकी थाप के साथ रामादल व राक्षसदल के बीच युद्ध होता है.
मूक रामलीला का मंचन लगभग 200 साल पहले जमना नाम की एक साध्वी ने रामाण जोहड़ से शुरू किया था. साध्वी जमना ने गांव के कुछ बच्चों को एकत्रित कर रामलीला का मंचन शुरू किया एवं हाथों से ही पात्र के मुताबिक मुखौटे भी तैयार किए थे. मुखौटा पहनने के बाद जब बच्चों को संवाद बोलने में दिक्कत होने लगी तो उनसे मूक रहकर ही अपने पात्र की भूमिका निभाने को कहा गया. तब से ही रामलीला के पात्र आपस में संवाद नहीं करते.
1949 से बाजार की मुख्य सड़क पर हो रहा है मंचन
रामाण जोहड़ में लीला की शुरुआत होने के बाद इसका मंचन कुछ बरसों तक गुगोजी के टीले पर किया जाने लगा था. इसके बाद काफी समय तक स्टेशन रोड़ पर इसका मंचन किया गया लेकिन वर्ष 1949 से गढ़ के पास बाजार में मुख्य सड़क पर लीला का मंचन किया जा रहा है. इस लीला की खास बात है कि यह नवरात्र से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलती है. वहीं इस लीला में रावण दशहरे वाले दिन नहीं बल्कि चतुर्दशी के दिन जलाया जाता है. इसके दूसरे दिन भरत मिलाप व राम के राज्याभिषेक के साथ सम्पन्न होती है. इसके अलावा रामलीला में पंचवटी व लंका की बनावट मैदान के उत्तरी भाग में लकड़ी की बनी हुई अयोध्या व दक्षिण भाग में सुनहरे रंग की लंका तथा मध्य भाग में पंचवटी रखी जाती है.
सभी पात्रों के लिए बनाई जाती है खास पोशाक
रामलीला में अभिनय करने वाले कलाकार देवकी नंदन ने बताया कि लीला शुरू होने से पहले चारों स्वरूप हवेली से रथ पर सवार होकर रामलीला स्थल पहुंचते हैं. इसके अलावा बिसाऊ की रामलीला के पात्रों की पोशाक अन्य रामलीला की तरह शाही एवं चमक दमक वाली पोशाक न होकर साधारण पोशाक होती है. वहीं राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न की पीली धोती, वनवास में पीला अंगरखा, सिर पर लम्बे बाल एवं मुकुट होता है. मुख पर सलमे-सितारे चिपका कर बेल-बूटे बनाए जाते हैं.
रामलीला देखने काफी संख्या में सैलानी आते हैं
हनुमान, बाली-सुग्रीव, नल-नील, जटायु एवं जामवंत आदि की पोशाक भी अलग अलग रंग की होती है. वहीं रामलीला के आखिरी चार दिनों में कुंभकरण, मेघनाद, नरांतक एवं रावण के पुतलों का दहन किया जाता है. इस अनोखी मूक रामलीला को देखने के लिए प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ काफी संख्या में सैलानी भी पहुंचते हैं.
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FIRST PUBLISHED : October 15, 2023, 17:34 IST