Challenge Darwinian Theory in Supreme Court: ‘हम यहां न्यूटन या आइंस्टीन को गलत साबित करने बैठे हैं क्‍या?’ सुप्रीम कोर्ट ने नाराज होते हुए क्‍यों ऐसा कहा, जानें मामला

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सुप्रीम कोर्ट में जब एक अजीबोगरीब याचिका दाखिल हुई. याचिका में डार्विन के प्राकृतिक चयन और जैविक विकास के सिद्धांत के साथ ही अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत के सूत्र (E=MC2) को गलत बताया गया. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने याचिका में मांग की क‍ि डार्व‍िन और आइंस्‍टीन के स‍िद्धांत पर सुधार की मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर नाराजगी जताते हुए सुनवाई से इंकार कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम यहां न्यूटन या आइंस्टीन को गलत साबित करने के लिए नहीं बैठे हैं. बेहतर होगा कि याचिकाकर्ता अपना सिद्धांत खुद प्रतिपादित करें. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने आदेश में कहा क‍ि याचिकाकर्ता यह साबित करना चाहता है कि डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत और आइंस्टीन के समीकरण गलत हैं और वह उक्त उद्देश्य के लिए एक मंच चाहता है.

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कोर्ट ने आगे कहा क‍ि यदि यह उसका विश्वास है तो वह अपने विश्वास का प्रचार कर सकते है. यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका नहीं हो सकती है, जिसे मौलिक अधिकारों के मुद्दों से निपटना हो.

सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर तर्क दिया क‍ि मैंने अपने स्कूल के समय और कॉलेज के समय में पढ़ाई की है और आज मैं कहता हूं कि मैंने जो कुछ भी पढ़ा वह गलत था. इस पर, न्यायमूर्ति कौल ने जवाब दिया क‍ि तो आप सुधर जाइए आपका सिद्धांत, इसमें सुप्रीम कोर्ट को क्या करना चाहिए. आप कहते हैं कि आपने स्कूल में कुछ पढ़ा, आप विज्ञान के छात्र थे. अब आप कहते हैं कि वे सिद्धांत गलत हैं. यदि आप मानते हैं कि वे सिद्धांत गलत थे, तो सुप्रीम कोर्ट का इससे कोई लेना-देना नहीं है. इसमें अनुच्छेद 32 के तहत आपके मौलिक अधिकार का उल्लंघन क्या है?

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