रिजर्व कोचों में भीड़ बढ़ने का यह है प्रमुख कारण, और जानें इस संबंध में रेलवे के नियम

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नई दिल्‍ली. दिल्‍ली-मुंबई से बिहार और पूर्वी उत्‍तर प्रदेश की ओर जाने वाली ज्‍यादातर ट्रेनें खचाखच भरी होती हैं. हालात यह होती है कि जनरल कोच में पैर रखने की जगह नहीं होती है, इसकी बड़ी वजह वेटिंग टिकट है . ये यात्री स्‍लीपर और एसी क्‍लास में घुसकर सफर करना चाहते हैं. इनमें विंडो टिकट के अलावा कई ऑनलाइन टिकट लेने वाले ऐसे यात्री होते हैं जो किसी भी तरह गंतव्‍य तक पहुंचना चाहते हैं. हालांकि रेलवे का कहना है टीटी ऐसे यात्रियों को कोच से बाहर निकलाता है या जुर्माना लगाता है.

भारतीय रेलवे से रोजाना 1.85 करोड़ लोग यात्रा करते हैं. इनमें से 1.77 करोड़ लोग नॅान एसी यानी स्‍लीपर और जनरल क्‍लास से और 8.57 लाख लोग एसी से सफर करते हैं. इस तरह एसी से सफर करने वालों का आंकड़ा बहुत ही कम है. ज्‍यादातर लोग स्‍लीपर या जनरल से सफर करते हैं.

इस वजह से एसी और स्‍लीपर में घुसते हैं यात्री

रेलवे वेटिंग टिकट इसलिए देता है, क्‍योंकि टिकट बुक कराने के बाद तमाम लोग अपनी यात्रा कैंसिल कर देते हैं, इस वजह से रेलवे वेटिंग टिकट देता है, जिससे बर्थ खाली न जाएं और राजस्‍व का नुकसान न हो. सामान्‍यत: चार्ट बनने तक 20 से 25 फीसदी टिकट कैंसिल होते है. कैंसिल टिकट के स्‍थान पर वेटिंग टिकट कंफर्म होता है.

एक ट्रेन में औसतन 200 लोग वेटिंग टिकट पर करते हैं सफर

एक ट्रेन में औसतन 1000 लोग सफर करते हैं. इसके साथ ही, वेटिंग टिकट कंफर्म न होने वाले करीब 200 यात्री भी स्‍लीपर और एसी क्‍लास में घुसकर सफर करते हैं. इनमें विंडो टिकट के अलावा कई ऑनलाइन टिकट लेने वाले ऐसे यात्री भी होते हैं जो किसी भी तरह गंतव्‍य तक पहुंचना चाहते हैं.

ये हैं नियम

रेलवे के डीजी (पीआईबी) योगेश बावेजा बताते हैं कि अगर कोई यात्री किसी दूसरी श्रेणी का टिकट लेकर उसी श्रेणी के कोच में न चढ़कर दूसरे में चढ़ता है तो उसे आरपीएफ की मदद से कोच से उतारा जाता है और अगर वो यात्री नहीं उतरता है तो उस पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है.

अगर कंफर्म टिकट के बाद भी सीट नहीं मिली तो मुआवजे का प्रावधान नहीं

रेलवे दूसरी श्रेणी के कोच में सवार होने पर आपसे जुर्माना ले सकता है लेकिन कोच में जबरन दूसरी श्रेणी के लोग घुस आते हैं और इस वजह से आपको सीट नहीं मिलती तो रेलवे में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि आपको सीट न मिलने पर मुआवजा मिल सके.

जुर्माने का यह है नियम

प्रीमियम ट्रेनों यानी शताब्‍दी, राजधानी, वंदेभारत, दूरंतो और तेजस में बगैर टिकट सफर करने पर आपको ट्रेन के शुरू होने वाले स्‍टेशन से लेकर आखिरी स्‍टेशन तक का डबल किराया देना होगा. भले ही आपको किसी भी बीच के स्‍टेशन में उतरना हो. हालांकि इसमें कैटरिंग केवल एक बार ली जाएगी. उदाहरण के लिए इसे ऐसे समझ सकते हैं कि किसी ट्रेन का शुरू से अंत तक का किराया 4200 रुपये हैं, इसमें 400 रुपये कैटरिंग का चार्जेस होता है तो यात्री को पेनाल्‍टी के रूप में 8000 रुपये देना पड़ सकता है. अगर ट्रेन मेल या एक्‍सप्रेस है तो बगैर टिकट सफर करने पर पिछले स्‍टेशन से जहां तक जाना है, वहां तक के किराए का दोगुना पेनाल्‍टी के रूप में देना होगा. एक यह भी नियम है कि कहीं का किराया 200 रुपये से कम है तो उन स्थितियों में किराए के साथ जुर्माने के रूप में 250 रुपये चुकाने पड़ सकते हैं.

इस तरह कर सकते हैं शिकायत

अगर आपके कोच में दूसरी श्रेणी या अनारक्षित टिकट लेकर कोई यात्री चढ़ता है तो सबसे पहले आप टीटी से शिकायत कर सकते हैं. तीन कोच में एक टीटी होता है. इसके बाद आप टीएस (ट्रेन सुपररिंटेंडेंट) से शिकायत कर करते हैं, टीएस की सीट पेंट्रीकार में होती है. इसके अलावा आप आरपीएफ के जवानों से या 182 पर आरपीएफ कंट्रोल रूम पर शिकायत कर सकते हैं. इसके अलावा 139 पर या ट्विटर पर शिकायत कर सकते हैं.

इस तरह शिकायत पर कार्रवाई

अगर आप ट्रेन में टीटी, टीएस या आरपीएफ से शिकायत करते हैं तो उनकी जिम्‍मेदारी है कि वहीं पर समाधान करें. जब आप शिकायत कंट्रोल रूम या ट्विटर पर करते हैं, इसके लिए सेल बनाया गया है, सेल में तैनात कर्मी आपके पीएनआर से ट्रेन की लोकेशन ट्रैक करते हैं. इसके बाद मैसेज आने वाले स्‍टेशन के डिवीजन और जिस डिवीजन से ट्रेन शुरू हुई है, वहां भेजते हैं. वहां से जिस विभाग से संबंधित शिकायत होती है, उसके पास भेजी जाती है.

दो घंटे में समाधान नहीं तो रेलवे मंत्रालय आती है शिकायत

अगर ऑनलाइन शिकायत होती है और उस पर दो घंटे तक कार्रवाई नहीं होती है तो साफ्टवेयर से स्‍वत: ही शिकायत रेलवे मंत्रालय तक पहुंच जाएगी. इसलिए संबंधित डिवीजन कोशिश करता है कि तय समय में शिकायत का समाधान कर दिया जाए.

औसतन चार हजार शिकायतें हर माह

रेलवे मंत्रालय के अनुसार या‍त्रियों द्वारा दर्ज की गयी शिकायतों की संख्‍या प्रति माह करीब चार हजार होती है. इनमें टीटी और टीएस से मौखिक शिकायत शामिल नहीं है. इन शिकायतों में से करीब 90 फीसदी शिकायतों का समाधान हो जाता है.

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