बेहतरीन और संजीदा शायरी करने वाले मशहूर शायर निदा फ़ाज़ली ने बच्चों को लेकर खूब लिखा है. अपने तकरीबन सभी मुशायरों में वे बच्चों से जुड़े दो-चार शेर जरूर सुनाते थे. मंच पर संदीजगी के साथ दुनियादारी से लेकर समाजिकता के हर सवाल पर गहरे अर्थों वाले शेर और दोहे कहने वाले निदा फ़ाज़ली के सीने में किसी बच्चे का ही दिल था. उनसे मिलने वाले इसकी तसदीक करेंगे. खासतौर से वे अपनी निजी मुलाकातों में शेरों की चर्चा कम ही किया करते. मौज की बातें और इतिहास के खजाने से निकाल कर कोई रोचक बात करना ही उन्हें पसंद था.
दिल्ली आने पर तकरीबन दस-बारह बरसों तक उनसे मिलने और मुशायरों के बाद होने वाली बैठकी में शामिल होने का मौका मिला. इसमें बहुत ही चुनिंदा और तकरीबन नियमित व्यक्ति ही होते थे. कभी-कभार ही निदा फ़ाज़ली साहब किसी और को आमंत्रित किया करते. शायर हसन काज़मी, पत्रकार नाजिम नकवी, अतुल गंगवार और लेखक खुद तो बैठक में होते ही थे. नाजिम नकवी भी लिखते हैं. हसन काजमी तो जमे जमाए शायर ही हैं. शुरूआत में इन दोनों में से किसी को या फिर अगर कोई और नया रचनाकार आया है तो निदा उससे कुछ नया सुनाने को कहते. उनके सुनने के बाद निदा फ़ाज़ली साहब आम तौर पर कुछ रोचक बातें इतिहास से निकाली हुई बताते. ये बातें ज्यादातर उनके अपने स्वाध्याय से प्रकट हुई ही होती थीं. संजीदा बातों पर या तो वे शेर कहते थे या फिर अलग- अलग प्रकाशनों में नश्र के तौर पर लिख देते.
ऐसी ही एक बैठक में निदा फ़ाज़ली साहब ने बताया था कि ‘मियां’ शब्द कहां से आया. निदा की राय में जब मुगल शासन के दौरान सिपाही तलवार लेकर घोड़े पर आते तो लोगों को सचेत होना पड़ता था. इसके लिए वे चिल्ला कर एक दूसरे को तो बता नहीं सकते थे. लिहाजा उन्होंने धीरे से एक दूसरे को संकेत करना शुरु कर दिया, म्यानी या मियानी आ रहे हैं. म्यान या मियानी का अर्थ तलवार रखने वाले म्यान से ही था. इसे ही धीरे से बोलने से कालांतर में ये मियां में तब्दील हो गया.
बहरहाल, जिक्र निदा फ़ाज़ली के बच्चों को लेकर लिखे गए शेरों का था. उन्होंने बहुत सारे शेर बच्चों के हवाले से लिखे. यहां तक कि उन्होंने कोई गंभीर बात तंज के जरिए कहनी होती थी तो वहां भी उन्होंने बच्चों की भावना का ही इस्तेमाल किया.
बच्चा बोला देख कर मस्जिद आलीशान
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान.
बच्चे की खुशी को निदा फ़ाज़ली इबादत से भी ज्यादा अहम और जरूरी मानते थे. इसके लिए उन्हें आलोचना भी झेलनी पड़ी.
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए.
बच्चों की शख्सियत को खुल कर खिलने का अवसर देने के लिए उन्होंने हमेशा बच्चों पर किताबों का बोझ लादने की मुखालफत की. निदा साहब राय में किताबी ज्ञान बालमन की कल्पनाशीलता को बाधित ही करता है. उनकी कल्पना शक्ति ही बच्चों को अच्छे से विकसित करती है.
बच्चों के नन्हें हाथों को चांद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे.
बिटिया की छोटी-सी शॉपिंग पर लिखा शेर तो वे तकरीबन हर मुशायरे में सुनाया ही करते थे –
गोटे वाली लाल ओढ़नी
साथ में चोली-घाघरा
उसी से मैचिंग करने वाला
छोटा-सा इक नागरा
छोटी-सी ये शॉपिंग थी
या कोई जादू-टोना
लंबा-चौड़ा शहर अचानक
बनकर एक खिलौना
इतिहासों का जाल तोड़ के
पगड़ी
दाढ़ी
ऊँट छोड़ के
आ से अम्माँ
ब से बाबा
बैठा बाँच रहा था
पाँच साल की बच्ची बनकर
जयपुर नाच रहा था…
.
Tags: Hindi Literature, Hindi poetry, Literature, NIDA
FIRST PUBLISHED : October 11, 2023, 20:23 IST