बुजुर्गों में डिप्रेशन हो सकता है खतरनाक, कसरत और मेल-मिलाप से तरोताजा रहेगी जिंदगी

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नोएडा के एक पॉश सोसायटी में रहने वाले 65 वर्षीय रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी सुरेंद्र पाल त्यागी (काल्पनिक नाम) का एक खूबसूरत परिवार है. परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं. उनके बच्चों के भी अब बच्चे हो गए हैं. उनके पास पैसों की भी कोई दिक्कत नहीं है. वह खुद पेंशन उठाते हैं. उनके दोनों बच्चे विदेश में एमएनसी कंपनी में कार्यरत हैं. लेकिन, उनका परिवार आज एक छत के नीचे नहीं है. वह दुनिया में बिखरा पड़ा है. वह वर्चुअल दुनिया में एक दूसरे से जुड़े जरूर हैं मगर उनके फोर बीएचके फ्लैट के तीन कमरे खाली हैं. इतना सब होने के बावजूद त्यागी साहब बीते कोई आठ-नौ महीने से पत्नी से जब-तब बोलते रहते कि अब जिंदगी से मन ऊब-सा गया है. कुछ अच्छा नहीं लगता और हर वक्त डर सताता रहता है कि ना जाने कब, कौन हमें अकेला देखकर हमारा गला दबा देगा. पत्नी उन्हें बार-बार समझातीं कि आप बेवजह परेशान रहते हैं, ऐसा कुछ नहीं है. लेकिन कुछ फर्क नहीं पड़ता देखकर श्रीमती त्यागी ने अपने बच्चों से बातचीत की, तो उनका कहना था कि पापा को किसी साइकियाट्रिस्ट को दिखाइए.

लेकिन यह कहानी सिर्फ त्यागी साहब की नहीं है. इसी तरह की या इससे मिलती जुलती कहानियां आपको लगभग हर सोसायटी में मिल जाएंगी. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 15 प्रतिशत लोग मानसिक विकार से पीड़ित हैं. इन 15 प्रतिशत लोगों में से ज्यादातर डिप्रेशन और डिमेंशिया (मनोभ्रम) के शिकार हैं. हाल में अमेरिका में हुए एक अन्य सर्वे में यह बात सामने आई है कि ऐसे लगभग 1,000 उम्रदराज लोगों में से, जिनके बच्चे विदेश में हैं, ज्यादार अकेलेपन से परेशान थे. करीब 39 प्रतिशत बुजुर्गों को मलाल था कि वे करीबियों के साथ वक्त नहीं गुजार पा रहे हैं. 10 में से सात लोगों ने तो यह भी स्वीकार किया कि उनमें सामाजिकता की कमी है और उन्हें लगता है कि आस-पास रहने वाले लोगों से सामाजिक संवाद बढ़ाना चाहिए.

इसी साल अप्रैल महीने में जब वह पति के साथ, नई दिल्ली में मानसिक विकार के इलाज के लिए विद्यासागर इन्स्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ, न्यूरो एंड एलायड साइंसेज (विमहांस) में साइकियाट्रिस्ट डॉ. गजानन से परामर्श लेने के लिए उनकी ओपीडी में मिलीं तो त्यागी साहब की सबसे बड़ी शिकायत यही थी कि रिटायरमेंट के बाद वह खुद को बेकार महसूस करते हैं. वह चाहते हैं कि जितनी जल्दी हो सके, दुनिया से छुटकारा मिल जाए. डायबिटीज और डिप्रेशन के मरीज होने के बाद उन्हें हर समय लगता है कि चूंकि जिंदगी में कोई आनंद नहीं है तो फिर जिंदा रहने क्या मतलब.

इस बारे में डॉ. गजानन बताते हैं कि आम इंसानों की तुलना में उम्रदराज लोगों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होने की आशंका बहुत ज्यादा रहती है, क्योंकि ज्यादातर बुजुर्ग डायबिटीज, हाइपरटेंशन या फिर कैंसर जैसी बीमारियों से जूझ रहे होते हैं. अकेलापन और अपने समय का सदुपयोग न कर पाने का मलाल भी बुजुर्गों के लिए मानसिक विकार की वजह बनते हैं. पिछले कुछ वर्षों से एक और चिंताजनक प्रवृत्ति पर मेरी नजर है. मैं इसी नतीजे पर पहुंचा हूं कि मनोविकृत्ति की देर से शुरुआत के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. अगर कोई उम्रदराज व्यक्ति अलग-थलग रहता है, लगातार हमउम्र लोगों के खिलाफ होने वाले अपराध के बारे में पढ़ता है, और उसकी वजह से उसके मस्तिष्क की कोशिकाओं में परिवर्तन होता है, तो आशंका रहती है कि वह देर से शुरू होने वाली मनोविकृति से पीड़ित हो जाए.

महानगरों या बड़े शहरों में, जहां पड़ोसियों से लिफ्ट के अलावा, कम ही मुलाकात होती है, और जहां अपराध की दर बहुत ज्यादा होती है, वहां बुजुर्गों को अपनी शारीरिक हिफाजत की चिंता सताने लगती है. उसी सर्वे के मुताबिक करीब 22 प्रतिशत बुजुर्गों को सबसे ज्यादा चिंता अपनी सुरक्षा को लेकर थी. उधर, विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े इस बात की तसदीक करते हैं कि दुनियाभर में हर छठे बुजुर्ग को किसी ना किसी तरह के दुर्व्यवहार का अनुभव होता है. डॉ. गजानन कहते हैं, व्यामोह कई बार डिमेंशिया यानी मनोभ्रंश का पहला संकेत होता है. जब किसी बुजुर्ग को तालों की चॉबी खोजने में परेशानी होने लगती है, बैंक अकाउंट का विवरण याद नहीं रहता है, या वह हर चीज को शक की निगाह से देखने लगता है, तो फिर मान लेना चाहिए कि वह डिमेंशिया से पीड़ित है.

मनोचिकित्सकों के मुताबिक सामाजिक मेल-जोल इसमें अहम भूमिका निभा सकता है. बुजुर्गों का मानसिक स्वास्थ्य तभी प्रभावित होता है, जब वे अपने आप को अलग-थलग या अकेला महसूस करते हैं, क्योंकि आमतौर पर उन्हें यही लगता है कि वो स्वतंत्र रूप से कहीं आ-जा नहीं सकते या किसी से मिल जुल नहीं सकते. नियमित व्यायाम भी बुजुर्गों को मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में मददगार साबित हो सकता है. डॉ. गजानन ने बताया कि त्यागी साहब ने मेरी सलाह पर गंभीरता से अमल किया. दो-ढाई महीने के इलाज के बाद उनकी परेशानी काफी हद तक दूर हो गई थी. पिछले दिनों एक समारोह में त्यागी साहब से मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया कि अब वह बिल्कुल ठीक हैं.

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