Share Market Knowledge: किस कंपनी के शेयर खरीदें कि पैसा बने? यह एक एक सवाल है, जो शेयर बाजार में पैसा लगाने वाले लोगों के सामने यक्ष प्रश्न की तरह खड़ा रहता है. शेयर बाजार में लोगों को नुकसान केवल इसलिए होता है, क्योंकि वे पैसा लगाने के लिए सही कंपनी नहीं चुन पाते हैं. पर क्या एक सही कंपनी चुनना इतना मुश्किल काम है? नहीं, पैसा लगाने के लिए एक बेहतर कंपनी का चुनाव करना बहुत मुश्किल नहीं है. इसके लिए थोड़ी-सी मेहनत करनी होगी. उस मेहनत के लिए आपको प्रोफेशनल होना भी जरूरी नहीं है. आप केवल कंपनी के दो प्रमुख आंकड़ों को देखकर ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कंपनी का भविष्य कैसा रह सकता है. अच्छा लगे तो पैसा लगाओ, न लगे तो दूर रहो. बस इतनी सी बात है. तो वो दो आंकड़े कौन-से हैं?
हम जिन दो आंकड़ों की बात कर रहे हैं, वे हैं एसेट्स (संपत्तियां) और लायबिलिटीज़ (देनदारियां). यदि आप बिजनेस और उसकी बारिकियों को नहीं भी समझते हैं, तब भी आप इन दो चीजों के जरिये कंपनी का भविष्य देख सकते हैं. ऐसा करके आप कम से कम संभावित नुकसान से बच जाएंगे. वैसे, बता दें कि शेयर बाजार के एक्सपर्ट कंपनियों के फंडामेंटल देख-समझकर ही पैसा लगाते हैं. फंडामेंट्ल अच्छे हैं या खराब, यह जानने के लिए कंपनियों की बैलेंस शीट खंगालनी पड़ती हैं. साथ ही उनकी भविष्य की रणनीतियों पर भी नजर दौड़ानी होती है. तब जाकर एक एक्सपर्ट किसी शेयर पर अपनी राय जाहिर करता है.
क्या होती है बैलेंस शीट
Assets = Liabilities + Shareholder’s Equity
बैलेंस शीट में एक तरफ एसेट्स की जानकारी दी गई होती है तो दूसरे पाले में लायबिलिटीज़ अथवा देनदारियों का जिक्र होता है. यह कंपनी के कुल एसेट्स की बात करती है और बताती है कि उन एसेट्स को कहां से फाइनेंस किया जा रहा है. यह फाइनेंस या तो कर्ज से हो रहा होता है, या फिर इक्विटी से. इसी को नेट वर्थ की स्टेटमेंट या फिर स्टेटमेंट ऑफ फाइनेंशियल पॉजिशन भी कहा जा जाता है.
निवेश करने से पहले कैसे देखें बैलेंस शीट
लग सकता है कि बैलेंस शीट पढ़ना भारी-भरकम काम होगा, मगर यह काफी आसान है. आपको केवल एसेट्स और लायबिलिटीज़ की तुलना करनी होती है. यदि एसेट्स बेहतर हैं और लायबिलिटीज़ कम हैं तो कंपनी का शेयर आपके काम का हो सकता है. परिणाम इसके उलट नजर आता है तो उस कंपनी से दूर रहने में ही फायदा है.
क्या होते हैं एसेट्स (Assets)
एसेट्स दो तरह के होते हैं –
1. करेंट एसेट्स – ऐसे एसेट, जिनके एक साल के अंदर-अंदर कैश में बदलने की उम्मीद होती है. इसमें कैश, प्राप्त किए जाने वाले अकाउंट्स, इन्वेंट्री, और शॉर्ट-टर्म इन्वेस्टमेंट शामिल हैं.
2. नॉन करेंट एसेट्स – ऐसे एसेट उसी वर्ष कैश में कन्वर्ट न होकर आने वाले कुछ सालों में फायदा पहुंचाते हैं. इन्हें लॉग्न टर्म एसेट भी कहा जाता है. एसेट्स की इस कैटेगरी में प्रॉपर्टी प्रॉपर्टी, प्लांट, उपकरण इत्यादी आते हैं. ऐसे एसेट बताते हैं कि कंपनी लंबी अवधि में भी ग्रोथ की तरफ देख रही है और भविष्य में अच्छा पैसा बनाने की संभावनाएं है.
क्या होती हैं देनदारियां (Liabilities)
देनदारियां (Liabilities) भी दो तरह की होती हैं –
1. करेंट लायबिलिटीज़ – वह कर्ज, जो कंपनी को एक साल के अंदर चुकाना होता है. इसमें पे-एबल अकाउंट्स, शॉर्ट टर्म लोन, और लॉन्ग टर्म लोन की छोटा भाग जैसी चीजें शामिल होती हैं. यह देनदारी एसेट्स के मुकाबले जितनी अधिक होंगी, कंपनी को आगे बढ़ने से रोकेंगी. हालांकि, यदि कंपनी इसे अच्छे से मैनेज कर ले तो लॉन्ग टर्म ग्रोथ बेहतर हो सकती है.
2. नॉन करेंट लायबिलिटीज़ – एक साल के बाद भी जो देनदारियां बरकरार रहेंगी. लंबी अवधि का कर्ज, पे-एबल बॉन्ड्स, टैक्स लायबिलिटीज़ इत्यादी इसमें शामिल हैं. लंबी अवधि में यदि बहुत अधिक कर्ज चुकाना है तो कंपनी में वित्तीय जोखिम अधिक होगा.
कहां देखें बैलेंस शीट
अब एक अंतिम सवाल आपके मन में उठ सकता है कि किसी भी कंपनी की बैलेंस शीट चेक करनी हो तो कहां मिलेगी? शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों की बैलेंस शीट उनकी बेवसाइट पर जरूर उपलब्ध होती है. इसके अलावा आप देश की सबसे बड़ी बिजनेस बेवसाइट मनीकंट्रोल (MoneyControl) पर भी चेक कर सकते हैं. यहां आपको पूरी जानकारी मिलेगी. उम्मीद करते हैं कि आपको ये कॉन्सेप्ट समझ में आया होगा और भविष्य में पैसा लगाने से पहले आप इस पर जरूर नजर डालेंगे.
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(Disclaimer: यह आर्टिकल केवल जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है. यदि आप किसी भी शेयर में पैसा लगाना चाहते हैं तो पहले सर्टिफाइड इनवेस्टमेंट एडवायजर से परामर्श कर लें. आपके लाभ या हानि के लिए News18 जिम्मेदार नहीं होगा.)
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