Explainer : थाईलैंड में जब 12 बच्चे गुफा में फंसे तो बगैर खाए-पीए कैसे 09 दिन जिंदा रहे

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हाइलाइट्स

साइंस कहती है कि बगैर खाए पीए कोई भी व्यक्ति 03-04 दिनों से ज्यादा जिंदा नहीं रह सकता
थाईलैंड में गुफा में फंसे बच्चों ने ध्यान के जरिए जिस तरह खुद को 09 दिनों बगैर खाए-पीए जिंदा रखा, वो चमत्कार जैसा ही था

उत्तराखंड में उत्तरकाशी में पहाड़ को बोरिंग करके बनाई जा रही टनक जब 12 नवंबर को अचानक बंद हो गई तो इसमें काम कर रहे 40 मजदूर फंस गए. ये खबरें भी आईं कि अंदर उनकी हालत खराब है. हालांकि हादसे से तीसरे दिन ही उन्हें हल्के-फुल्के तरीके से खाना पहुंचाने की आपूर्ति बहाल हो गई थी लेकिन इसके बाद भी उनकी हालत खराब होने लगी. ऐसे थाईलैंड की गुफा फंसे 12 बच्चों को 09 दिनों तक बगैर खाए-पीए रहना और इस पर जिंदा बचे रहना किसी चमत्कार से कम नहीं था.

सवाल – थाईलैंड का गुफा में बच्चों के फंसने का मामला क्या था?
– थाईलैंड में जूनियर फुटबाल खेलने वाले 12 बच्चे अपने युवा कोच के साथ अपनी टीम के एक साथी के जन्मदिन सेलेब्रेशन से पहले शहर के बगल की एक बड़ी गुफा में कुछ मस्ती करने शाम को गए. प्रोग्राम ये था कि वो लोग एक घंटे इस गुफा में रहेंगे और फिर यहां से निकल बर्थ-डे पार्टी को मनाएंगे. उनका वो साथ उस दिन 17 साल का होने जा रहा था.
लेकिन जैसे वो इस गुफा में घुसे, जिसमें हमेशा ही हल्का-फुल्का पानी भरा रहता था, तेज बारिश शुरू हो गई. गुफा में पानी तेजी से भरने लगा और जब ऐसे में इतना पानी इसमें भर चुका था कि वो बाहर नहीं निकल सकते थे. लिहाजा इस 12 किमी से लंबी गुफा में उन्होंने करीब 04 किलोमीटर दूर एक ऊंची जगह तलाशी और वहां शरण ले ली.

सवाल – इसके बाद अगले दिन वो बाहर क्यों नहीं निकल पाए?
– बारिश लगातार जारी थी और गुफा में पानी का भरना भी. लिहाजा अब बाहर निकलना मुश्किल था. ये स्थिति 09 दिनों तक बनी रही, जब तक कि उन्हें दो ब्रिटिश गोताखोरों ने किसी तरह अंदर जाकर खोज नहीं लिया. तब तक ये माना जा रहा था कि इन बच्चों का अब गुफा में फंसने के बाद बच पाना असंभव है. हर किसी ने उन्हें मरा मान लिया था. हालांकि ये बच्चे बचाव के बाद 17वें दिन बाहर निकल पाए लेकिन कुछ खाना पीना उन्हें 10वें दिन से पहुंचाया जाने लगा.

सवाल – क्या बच्चों का 09 दिनों बाद भी अंदर बचा निकलना कोई चमत्कार था या कोई ऐसी खास वजह, जिसने उन्हें बचाए रखा?
– बाहरी दुनिया के लिए ये निश्चित तौर पर चमत्कार था लेकिन ये कुछ हद तक ध्यान और गुफा की प्राकृतिक स्थितियों का असर था. बच्चों ने कुछ स्नैक्स अपने पास रखे थे लेकिन ये तो एक दो दिनों में ही खत्म हो गए.तब उनकी परीक्षा शुरू हुई. तब उन्होंने जो कुछ किया वो दुनिया के लिए एक ऐसी नजीर बन गई कि शायद उसको हमेशा पैमाना बनाकर याद रखा जाएगा.

सवाल – ध्यान से कैसे बच्चे जिंदा रहे?
– टीम का युवा कोच दरअसल पहले एक बौद्ध भिक्षु था. उसने बच्चों को गुफा के अंदर एक खास तरह का बौद्ध ध्यान सिखाना शुरू किया ताकि उनके अंदर का डर निकल सके और वो काफी हद तक भूख पर काबू कर पाएं. ध्यान से वो एक ऐसी मानसिक स्थिति में चले गए जहां उन्होंने खाने के बारे में सोचना ही बंद कर दिया. उन्हें भूख का अहसास नहीं होता था.
ध्यान की वजह से उन्होंने खुद को एकाग्र किया तो खुद को ज्यादा हल्का और ऊर्जावान पाया. उन्हें कमजोरी नहीं लगी, ये डर भी गायब हो गया कि इस गुफा में वो अगर फंसे रहे तो क्या होगा. दरअसल उनके कोच ने उन्हें आश्वस्त कर दिया था कि देर-सबरे मदद तो उन तक पहुंच ही जाएगी. बस धैर्य रखना है. ध्यान ने उनकी मेंटल स्ट्रैंथ को बढ़ाया. वो बहुत शांत होते गए.

सवाल – लेकिन जिंदा रहने के लिए उन्हें जिस ऑक्सीजन और पानी की जरूरत थी, वो कैसे मिली?
– दरअसल ये गुफा चूना पत्थरों की थी, जिससे पानी रिस-रिसकर गिर रहा था, ये पानी उन्हें पीना पड़ा, जो एकदम स्वच्छ और एनर्जी देने वाला भी था. ऑक्सीजन गुफा में पर्याप्त थी. दूसरे कोई भी प्राकृतिक गुफा सांस लेना जानती है और इस वजह से उसमें आक्सीजन आने के बहुत से रास्ते तो होते ही हैं. हां बीच बीच में अक्सर ऑक्सीजन का स्तर गिरा भी.

सवाल – तो क्या यही वो वजह थी, जिसने उन्हें चमत्कारिक तौर पर बचाया?
– हां, यही वजह थी, वह घंटों ध्यान में बैठना सीख गए थे, जिससे उनका शरीर एक अलग स्थिति में पहुंच जाता था. उन्हें आंतरिक और मानसिक शक्ति मिलती थी. पीने का पानी और हवा गुफा की स्थितियां उन्हें खुद उपलब्ध करा रही थीं.

सवाल – बगैर भोजन के कोई भी शख्स कितने दिनों तक जिंदा रह सकता है?
– शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि एक व्यक्ति भोजन के बिना तीन सप्ताह तक जीवित रह सकता है, बशर्ते उसके पास पीने के लिए पानी हो. पानी और भोजन दोनों के बिना कोई भी व्यक्ति चार दिन से अधिक जीवित नहीं रह सकता. दरअसल खाना नहीं मिलने पर भी शरीर अक्सर भुखमरी के दौरान ऊर्जा उत्पन्न करने और जीवन को लम्बा करने के वैकल्पिक तरीके ढूंढता है. लेकिन पानी की अनुपस्थिति में, शरीर में कई परिवर्तन और गंभीर निर्जलीकरण होता है, तब गुर्दे बंद हो सकते हैं और ऐसे में जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है.

सवाल – क्या गांधीजी ने भी ऐसा करके दिखाया था, जब वो बगैर खाए 21 दिनों तक रहे?
– 1940 के दशक में महात्मा गांधी ने सत्याग्रह के दौरान खाना बंद कर दिया. 21 दिनों तक केवल पानी के घूंट पिये. हालांकि उनके शरीर के द्रव्यमान में भारी कमी आई. फिर भी वे जीवित रहे. गांधी ने अपने पूरे जीवन में लंबे समय तक 14 भूख हड़तालों में भाग लिया.

सवाल- भुखमरी यानि खाना नहीं खाने की स्थिति में शरीर में क्या होता है?
– शरीर हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन में मौजूद कैलोरी से मिलने वाली ऊर्जा से चलता है. जब आप खाना बंद कर देते हैं, तो आपका शरीर भोजन के लिए अपने स्वयं के ऊतकों को तोड़ना शुरू कर देता है, जिससे आपके सिस्टम की सभी महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं बाधित हो जाती हैं. इसके परिणामस्वरूप गंभीर रूप से वजन घटता है और अंग विफलता की ओर बढ़ने लगते हैं.

सवाल – अगर आप खाना नहीं खा रहे हैं तो ब्रेन पर क्या असर पड़ेगा?
– मस्तिष्क आमतौर पर एक दिन में शरीर द्वारा उपभोग की जाने वाली कुल ऊर्जा का पांचवां हिस्सा लेता है.भुखमरी के दौरान, मस्तिष्क इस ऊर्जा से वंचित हो जाता है जो इसके कार्य करने के तरीके को प्रभावित करता है. हालांकि ऐसे मौकों पर ध्यान केंद्रीत करना मुश्किल होता है लेकिन अगर ऐसा हो गया तो मस्तिष्क बखूबी काम करके आप को सामान्य चैतन्य स्थिति में रख सकता है.

सवाल – खाना कई दिनों तक नहीं मिलने से और क्या असर होता है?
– ऊर्जा का स्तर कम हो जाता है. हृदय के काम करने के तरीके पर असर पड़ता है. हृदय पूरे शरीर में रक्त को प्रभावी तरीके से पंप नहीं कर पाता, जितना उसे करना चाहिए, रक्तचाप और नाड़ी में कमी आ जाती है.आखिरकार हृदय विफल हो जाता है. पाचन तंत्र तो पहले प्रभावित हो चुका होता है, उसकी मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं.

सवाल – भोजन के अभाव में और शरीर क्या क्या झेलता है?
– भोजन के अभाव में, शरीर टेस्टोस्टेरोन, एस्ट्रोजन और थायराइड हार्मोन जैसे हार्मोन का उत्पादन नहीं कर पाता है, जिसके कारण निम्न बातें होती हैं
– हड्डियों में कमजोरी .
– चयापचय दर में कमी.
– मासिक धर्म की अनियमितता या पूर्ण समाप्ति
– हाइपोथर्मिया (शरीर के मुख्य तापमान में भारी कमी)
– शुष्क त्वचा
– भंगुर बाल या बालों का झड़ना
– भुखमरी के दौरान शरीर को हाइपोथर्मिया से बचाने के लिए, शरीर लैनुगो नामक बालों का एक पंख जैसा आवरण बनाता है जो शरीर को गर्म रखता है.

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